बिहार में सैकड़ों बच्चों की मौत का जिम्मेदार कौन


यह सच है कि मुजफ्फरपुर बिहार में है। उसे लोग उत्तर बिहार की राजधानी भी बोलते हैं। इसलिए वहां की मौत को मुजफ्फरपुर में हो रही मौत ही कहा जायेगा, बिहार में हो रही मौत ही कहा जायेगा। इस सच से कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन जितना यह सच है, उतना यह भी सच है कि मुजफ्फरपुर भी उसी महान भारत का एक क्षेत्र है जिसके बारे में लगातार बताया जा रहा है कि वह अब विश्व की महाशक्ति बन चुका है।


मैं एक बार फिर कह रहा हूँ कि ये बच्चे जो नहीं रहे या जो इसकी चपेट में हैं, किसी जिले या राज्य के नहीं, महान भारत के बच्चे हैं। इसलिए इसे लेकर किसी राज्य की आलोचना करने की जगह इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि भारत के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में कुपोषण आज भी ज़िन्दा है जिसकी वजह से फैले इंफ्लाइटिस ( चमकी बुखार ) से एक सौ चालीस बच्चे मर चुके हैं और सैकड़ों चपेट में हैं। यह वह क्षेत्र है, जहाँ से जार्जफर्नाडीज जैसे लोग भी सांसद रहे हैं।
इस सच को भी जानिए कि बिहार बंगाल नहीं है। बिहार ने 40 में 39 सांसद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को दिए हैं। इस क्षेत्र के कई महत्वपूर्ण लोगों से मेरी बातचीत होती है जो लोकसभा चुनाव के पहले भी कहते थे कि मोदी की वजह से वोट एनडीए को देने जा रहे हैं और चुनाव के बाद भी कहते हैं कि यह जीत मोदी की जीत है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी को भी इस समस्या को चुनौती के रूप में लेना चाहिए। यह मानना चाहिए कि कुपोषण की वजह से फैले इंफ्लाइटिस ( स्थानीय लोगों के शब्दों में चमकी बुखार ) से महान भारत के एक सौ चालीस बच्चे मरे हैं।
प्रधानमंत्री चाहें तो इसके लिए केंद्र की पिछली सभी सरकारों को कोस सकते हैं कि उन लोगों ने कुपोषण की समस्या को गम्भीरता से नहीं लिया और मैं नरेंद्र मोदी ले रहा हूँ।
फिर वह इसे लेकर कोई ठोस नीति बनाएं जिससे आने वाले दिनों में कुपोषण शब्द से मुक्ति मिल सके। इससे मुक्ति मिल गयी तो इंफ्लाइटिस ( चमकी बुखार ) से भी मुक्ति मिल जाएगी।
इसे लेकर किसी की आलोचना करने से बेहतर है कि इसे लेकर भारत सरकार, सूबे की सरकार और लोग भी खुद जगे और लोगों को जगाएं।इसके लिए मंगलपांडे, अश्वनी चौबे, हर्षवर्धन, सुशील मोदी और नीतीश कुमार को टारगेट करने की जगह इस बीमारी की जड़ कुपोषण को टारगेट करें और हिम्मत हो तो इसके भारत सरकार को ललकारें कि वह भारत के 140 बच्चों की मौत को गम्भीरता से लें।
मैं नहीं जानता कि इस समय आदरणीय श्री किशोर कुणाल जी कहाँ हैं। इधर लम्बे समय से उनसे बात नहीं हुई है। फिर भी मैं किसी सरकार से नहीं, श्री किशोर कुणाल जी आग्रह कर रहा हूँ कि वह भारत के 140 बच्चों की मौत के मूल कारण कुपोषण से लड़ने के सवाल को संज्ञान में लें। ईश्वर ने उन्हें असीम ताकत दिया है। वह हो सके तो इस ताकत का इस दिशा में उपयोग करें।
मन तो कह रहा है कि बिहार के पुलिस महानिदेशक श्री गुप्तेश्वर पांडेय से भी कुछ कहूँ लेकिन वह एक संवेदनशील पद पर हैं, इसलिए कुछ नहीं कह रहा हूँ, इस उम्मीद के साथ कि वह खुद ही कुछ सोच रहे होंगे इस दिशा में।
समाजिक संगठनों को भी इसे लेकर आगे आना चाहिए और गांव गांव में जन जागरण करना चाहिए कि अपने अन्य खर्च जैसे बीड़ी, तम्बाकू, नशा के खर्च को कमकर कुपोषण से लड़ें और भारत के बच्चों को मौत के मुंह से बचाएं। आपदाकाल में इस क्षेत्र के व्यवसायी भी बढ़चढ़ कर दान करते हैं, खासतौर से बाढ़ के समय में। उनलोगों को एक बार कुपोषण के सवाल को चुनौती के रूप में लेना चाहिए।
इस बार की दिल्ली यात्रा में राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश जी मुलाकात हुई। लोकबन्धु राजनारायण के लोकसभा और राज्यसभा के भाषणों की प्रति के लिए हमलोग चार साल से भटक रहे थे। कई सूरमाओं ने आश्वासन भी दिया। दिल्ली बुलाया भी लेकिन हर बार आश्वासन देने के लिए ही। श्री हरिबंश जी ने बुलवाया सीधे सीधे प्रति देने के लिए और दिया। ईश्वर उन्हें सुख, शांति और यश दे। जून में ही उनसे फिर मिलने की उम्मीद है। मिला तो उनसे भी कहूँगा, कुपोषण से लड़ना हम सबकी जिम्मेदारी है। इस सिलसिले में कुछ आप ही करिए।
अवध में जी रहा हूँ। फिर भी मन चम्पारण, मुजफ्फरपुर और मिथला में लगा रहता है। इसलिए कुछ राय दे दिया। किसी को बुरा लगे तो क्षमा के साथ ईश्वर से प्रार्थना कर रहा हूँ,
" सिर्फ इतनी सी इनायत रखो।
बाल - बच्चों को सलामत रखो।"