लोगों ने उड़ाया मजाक फिर भी जुटे रहे बुंदेलखंड के मांझी बाबा कृष्णा आनंद

उप्र / कृष्णानंद ने 4 साल में 2.5 एकड़ का तालाब खोदा, अब बुंदेलखंड के 'मांझी' कहलाते हैं









  • हमीरपुर के बड़ा पचखुरा गांव में रहते हैं बाबा कृष्णानंद, अपने गुरु के नाम पर एक महाविद्यालय भी बनाया

  • कृष्णानंद के तालाब खोदने पर ग्रामीण मजाक उड़ाते थे लेकिन वे अपने काम में लगे रहे, प्रशासन की भी मदद नहीं ली



 



हमीरपुर. उत्तर प्रदेश सरकारहाईलेवल मीटिंगों में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट बनाने के बाद भी बुंदेखंड को सूखे की समस्या से उबार नहीं पाई। एक बुजुर्ग ने अपने पुरुषार्थ से एक गांव की पानी की समस्या का समाधान कर दिया है। हमीरपुर के बड़ा पचखुरागांव में इस साल भीषण गर्मी में पानी की समस्या से ग्रामीणों को दो-चार नहीं होना पड़ा। यहां रहने वाले कृष्णानंद बाबा (60) ने 4 साल अकेले जूझते हुए 8 बीघा (करीब ढाई एकड़) क्षेत्रफल के तालाब को 12 फीट गहरा खोदकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। अबतालाब पानी से लबालब है। बाबा को लोग बुंदेलखंड का दशरथ मांझी कहते हैं।


2015 में खुदाई शुरू की


बुंदेलखंड में दशकों सेतालाब और नदियां हर साल सूख जाती हैं। पानी की एक-एक बूंद के लिए लोगों को तरसना पड़ता है। इससे निपटने के लिए कई योजनाएं तो बनती हैं, लेकिन धरातल पर नहीं उतर पातीं।कृष्णानंद ने 2015 में सूखे से लड़ने की ठानी। गांव का चंदेलकालीन तालाब प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार था। सिल्ट जमा होने से तालाब उथला गया था। कृष्णानंदने तालाब को पुनर्जीवित करने का फैसला किया।


बाबा ने जिस समय तालाब को साफ और गहरा करना शुरू किया, तब उसकी गहराई 5 फीट भी नहीं थी। अकेले तालाब की खुदाई करते और मिट्टी को तसले में भरकर बाहर ले जाकर फेंकते बाबा को देखकर ग्रामीण मदद करने की जगह उन पर हंसते थे। ग्रामीणों के तंज से उनका हौसला नहीं टूटा। वह रात-दिन तालाब खोदने में लगे रहे। 4 साल लगातार प्रयास के बाद बाबा ने तालाब की सिल्ट को पूरा साफ करके इसे 12 फीट गहरा कर दिया। बारिश के पानी से यह लबालब है। यह उन ग्रामीणों की प्यास बुझा रहा है, जो मदद के लिए कभी आगे नहीं आए।


प्रशासन ने भी नहीं ली कभी सुध
सरकार मनरेगा के तहत तालाबों की खुदाई कराती है। इसमें काम करने वाले मजदूरों को 250 रुपए दैनिक मजदूरी दी जाती है, लेकिनकृष्णानंदने बिना किसी सहायता के लगातार 4 साल खुदाई की। उन्होंने तालाब की मेड़बंदी भी की है। तालाब के किनारे पौधे भी लगाए, जिनकी देखभाल वह खुद करते हैं।


कौन हैं कृष्णानंद
कृष्णानंद का असली नाम किशन पाल सिंह है। वे विज्ञान के छात्र रहे हैं। हाईस्कूल तक पढ़ाई करने के बाद 1982 में वह हरिद्वार चले गए और स्वामी परमानंदके शिष्य बनकर किशन पाल सिंह से कृष्णानंदहो गए। स्वामी के स्वर्गवास के बाद कृष्णानंद बुलंदशहर जिले के भाईपुर गांव आ गए और 13 साल के अथक प्रयास सेपरमानंदमहाविद्यालय की स्थापना की। 2014 में प्रबंध समिति को सबकुछ सौंपकर वह अपने गांव पचखुरा आ गए। उनका गांव में बने 200 साल पुराने रामजानकी मंदिरमें बसेरा है। यहीं वह पूजा-पाठ करके अपना जीवनयापन करते हैं।