जल प्रबंधन के लिए जन शक्ति जरूरी
परमेश्वरन अय्यर
जल प्रबंधन के लिए जन शक्ति जरूरी।
पानी, नई सरकार की विकास की कार्यसूची का शीर्ष विषय है और इस महीने के शुरू में वित्त मंत्री के बजट भाषण के बाद प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर भी दिया था। जल संरक्षण के लिए स्वच्छ भारत मिशन की तर्ज पर जन आन्दोलन छेड़ने का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि जल संचय का कार्य जनशक्ति के बिना सम्भव नहीं है। इससे पहले अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि देश में सबको जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केन्द्र सरकार ने जो पहला ठोस कदम उठाया वह नए जलशक्ति मंत्रालय के गठन का था। इस सशक्त संस्थागत कदम के अन्तर्गत पूर्ववर्ती जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास मंत्रालय और गंगा संरक्षण मंत्रालयों को पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के साथ समेकित कर जल पर केन्द्रित नया मंत्रालय गठित किया गया है। यह जल संसाधनों के प्रबन्धन के समेकन की दिशा में एक बड़ा कदम है जिसमें पेयजल की आपूर्ति और स्वच्छता के साथ-साथ देश में सभी घरों में पाइपलाइनों के जरिए स्वच्छ और पर्याप्त जल आपूर्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने पर जोर दिया गया है।
वित्त मंत्री ने जिक्र किया, सरकार की एक प्राथमिकता 2024 तक देश के सभी परिवारों को चिरस्थाई आधार पर पाइपलाइनों के जरिए पीने का पानी उपलब्ध कराने की है। इसके लिए जलशक्ति मंत्रालय ने 2019-20 में ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए करीब 10,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के लिए भी 10,000 करोड़ रुपए आवंटित करने का प्रस्ताव है।
अब तक की कहानी
अब तक भारत में पानी का संस्थागत परिदृश्य बिखराव वाला रहा है। करीब सात मंत्रालयों और 10 विभागों पर जल प्रबन्धन और इसके उपयोग के विभिन्न पहलुओं को देखने की जिम्मेदारी है। इससे जहाँ कुछ कार्यों और जिम्मेदारियों की दोहरावट होती है तो वहीं कुछ विवादग्रस्त मुद्दों को सुलझाने और आवश्यक निर्णय लेने के लिए कोई एक संगठन या प्राधिकारी उत्तरदाई नहीं है। नतीजा यह हुआ है कि ये मंत्रालय और विभाग एक दूसरे से अलग-थलग होकर कार्य कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में नीति आयोग ने पानी से सम्बन्धित उप-क्षेत्रों को समेकित कर ठोस शुरुआत की है। समेकित जल प्रबन्धन सूचकांक बनाया गया है और राज्यों को इसके आधार पर रैकिंग दी जाती है। इसी तरह नए जल शक्ति मंत्रालय का गठन अभिशासन सम्बन्धी एक जबरदस्त सुधार है जिससे जल क्षेत्र में समन्वय स्थापित करने में स्थाई और सकारात्मक असर पड़ेगा।
भारत में समन्वित जल प्रबन्धन का कार्य कभी उतना प्रासंगिक नहीं रहा जितना यह आज है। आज देश जल संकट के दौर में पहुँचने को है। कुछ अनुमानों के अनुसार अगर हम 'चलता है' रवैये से काम करते रहे, तो 2030 में पानी की माँग इसकी आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी से अधिक हो जाएगी। इससे 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद में 6 प्रतिशत के बराबर आर्थिक नुकसान होने के अनुमान है। इसके परिणामस्वरूप हमारी आबादी के काफी बड़े हिस्से को सीमित मात्रा में या पीने के पानी के बिना रहना पड़ सकता है। हालके उपग्रह डेटा से भी पता चला है कि मध्यम अवधि में भारत में पीने के पानी के सभी नलके पूरी तरह सूख सकते हैं और नई दिल्ली, बंगलुरु, चेन्नई और हैदराबाद में भूमिगत जल पूरी तरह सूख सकता है।
भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला
जल क्षेत्र में कुछ अक्षमताओं के परिणामस्वरूप वर्षा जल संग्रह और कम गन्दे अवजल के परिशोधन और फिर से इस्तेमाल में लाने जैसी चुनौतियाँ पैदा हुई हैं। फिलहाल भारत में साल भर में बरसने वाले पानी के केवल 8 प्रतिशत का ही उपयोग किया जाता है, जो दुनिया में सबसे कम है। मौजूदा बुनियादी ढाँचे का समुचित रखरखाव न होने से शहरी इलाकों में पाइप लाइनों से सप्लाई किए जाने वाले पानी का करीब 40 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। अवजल की सफाई कर उसे फिर से काम में लाने का कार्य लगभग नहीं के बराबर होता है। मिसाल के तौर पर पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहा एक और देश अपने यहाँ कम गन्दे पानी के शत प्रतिशत का शोधन करता है और इसमें से करीब 94 प्रतिशत का पुनर्चक्रण किया जाता है। फिर से उपयोग में लाए गए पानी से उसकी सिंचाई की आवश्यकता पूरी हो जाती है।
जहाँ तक पेयजल का सवाल है, कुल बसावटों में से 81 प्रतिशत में फिलहाल प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी किसी-न-किसी स्रोत से उपलब्ध है। भारत में सिर्फ 18 से 20 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास पाइपलाइनों के जरिए सप्लाई किए जाने वाले पानी के कनेक्शन हैं। जैसा कि वित्त मंत्री ने जिक्र किया, सरकार की एक प्राथमिकता 2024 तक देश के सभी परिवारों को चिरस्थाई आधार पर पाइपलाइनों के जरिए पीने का पानी उपलब्ध कराने की है। इसके लिए जलशक्ति मंत्रालय ने 2019-20 में ग्रामीण जल आपूर्ति के लिए करीब 10,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के लिए भी 10,000 करोड़ रुपए आवंटित करने का प्रस्ताव है। जल शक्ति मंत्रालय विकेन्द्रित लेकिन समन्वित जल संसाधन प्रबन्धन और सेवाएँ प्रदान करने को बढ़ावा देगा और उसका मुख्य जोर जल संरक्षण, जल स्रोत के स्थायित्व, भंडारण और अवजल के फिर से इस्तेमाल पर होगा। इस कार्य में जहाँ भी सम्भव होगा पानी का उपयोग करने वाले समाजों को शामिल किया जाएगा क्योंकि वे ही असली लाभार्थी हैं। जल संरक्षण के लिए विकेन्द्रित नियोजन के बेहतरीन तौर-तरीकों से सबक लिया जाना चाहिए। इनमें महाराष्ट्र में हिवारे बाजार और उत्तराखण्ड में समुदाय आधारित पेयजल आपूर्ति का स्वजल मॉडल शामिल है जिसका विस्तार किया जाना चाहिए।
जल शक्ति अभियान
पानी की किल्लत वाले इलाके, खास तौर पर चिन्हित किए गए समस्याग्रस्त ब्लॉकों और पानी की गुणवत्ता की समस्या वाले इलाकों में भूतलीय जल आधारित बहु-ग्राम योजनाओं की पहचान की जानी चाहिए। जहाँ भूमिगत जल की इफारत वाले क्षेत्रों में एक गाँव पर आधारित भूमिगत जल योजनाएँ चलाई जानी चाहिए, जिनमें एक छोर से दूसरे छोर तक स्रोत को चिरस्थाई बनाने के उपायों को बढ़ावा दिया गया हो। इन योजनाओं में वर्षा जल के पारिवारिक या सामुदायिक संचयन का भी प्रावधान किया जाना चाहिए और इस संचित जल का उपयोग भूमिगत जलाशयों को फिर से भरने में किया जा सकता है। जल संचय और संरक्षण की अन्य स्थानीय विधियों को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जल संचय के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास के स्थानीय तौर-तरीकों का एक उदाहरण मध्यप्रदेश के देवास जिले में देखा जा सकता है। यहाँ कृषक समुदाय को पानी के वैकल्पिक स्रोत और आपूर्ति स्रोत के रूप में तालाबों के बुनियादी ढाँचे के विकास के कार्य में सरकारी सहायता का उपयोग किया गया। इससे जिले में तालाबों के जल स्तर में 4 से 40 फुट की बढोत्तरी हुई। इतना ही नहीं इससे जिले का सिचिंत क्षेत्र भी 120-190 प्रतिशत बढ़ गया।
जल शक्ति मंत्रालय ने इसी सिलसिले में जल शक्ति अभियान शुरू किया है। यह देश के 256 जिलों के 1592 चुने हुए ब्लॉकों में जल संरक्षण गतिविधियों में हो रही प्रगति को तेज करने का केन्द्र और राज्य सरकारों का सहयोगपूर्ण प्रयास है। इस अभियान के तहत केन्द्र सरकार के 1000 से अधिक वरिष्ठ अधिकारी राज्यों के अधिकारियों के साथ मिलकर जल संचय और जल संरक्षण के प्रयास करेंगे।
हर घर जल
इसके बाद प्रत्येक पेयजल योजनाओं के अन्तर्गत जल संरक्षण पर ध्यान केन्द्रित करने का एक अन्य क्षेत्र है और वह है-घरों से निकलने वाले पानी (जलमल से इतर) जैसे रसोईघर या स्नानागार से निकलने वाले पानी (जिसे ग्रे वाटर, यानी अवजल कहा जाता है) के संचय और उसकी सफाई के लिए बुनियादी ढाँचे का विकास। इस तरह का पानी घरों में इस्तेमाल के बाद निकलने वाले कुल गन्दे पानी के करीब 80 प्रतिशत के बराबर होता है। इसका संचय साधारण तालाबों, कृत्रिम रूप से बनाई गई आर्द्र भूमियों और इसी तरह की स्थानीय अवसंरचना परियोजनाओं में किया जा सकता है। इसमें जमा पानी का पुनर्चक्रण कर उसे खेतों में सिंचाई के काम में लाया जा सकता है। इस तरह के कार्यों में हमारे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पानी का 80 प्रतिशत पानी खर्च होता है।
गुजरात जैसे कुछ राज्य माइक्रो इरिगेशन (सूक्ष्म सिंचाई) की सुविधा छह लाख से अधिक किसानों को उपलब्ध कराकर पानी के कुशल उपयोग के क्षेत्र में अग्रणी हैं। इन किसानों में से 50 प्रतिशत छोटे और मझोले किसान हैं। आन्ध्र प्रदेश सरकार भी खेती में पानी के दक्षतापूर्ण उपयोग के कार्य को प्राथमिकता प्रदान कर रही है और उसने अगले पाँच वर्षों में 40 लाख एकड़ जमीन को माइक्रो इरिगेशन के अन्तर्गत लाने के लिए 11,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। अगर इन उपायों के साथ-साथ अगर कृषि कार्यों में अवजल के उपयोग के प्रयासों को भी जोड़ दिया जाए तो हमारे जल संसाधनों पर कृषि के लिए पानी उपलब्ध कराने का दबाव काफी कम हो जाएगा।
वांछित जन आन्दोलन : पानी का संरक्षण हर एक की जिम्मेदारी
पानी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और सोच में बदलाव को भी महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता बनाना जरूरी है। आज भी पानी को असीमित यानी कभी न खत्म होने वाला संसाधन माना जाता है और देश के कई भागों में इसकी जमकर बर्बादी की जाती है, जबकि दूसरे राज्यों को सूखे जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है। पानी को लेकर अंदरूनी और बाहरी सहभागियों के व्यवहार में बदलाव के लिए की जा रही संचार सम्बन्धी पहल को सफल बनाना बहुत जरूरी है। हमें राज्य सरकारों से लेकर आम नागरिक जैसे सभी सहभागियों को साथ लेकर चलना होगा और राष्ट्रीय आम सहमति तैयार करनी होगी। इसके लिए स्वच्छ भारत मिशन की व्यवहार परिवर्तन सम्बन्धी संचार पहलों को समन्वित जल प्रबन्धन उपायों के क्षेत्र में अपनाना होगा और सबसे निचले स्तर पर पानी के संरक्षण के बारे में लोगों को प्रेरित करने के लिए जल संरक्षण सेनानियों की एक फौज खड़ी करनी होगी, जो स्वच्छ भारत मिशन के स्वच्छाग्रहियों के तर्ज पर होगी। इस तरह के पैदल सेनानियों यानी सबसे निचले स्तर के कार्यकर्ताओं, सरपंचों और ब्लॉक व जिला अधिकारियों की क्षमता बढ़ाने के प्रयास पहले ही शुरू किए जा चुके हैं।
समग्र और समन्वित जल प्रबन्धन के बारे में यह नीति संघीय प्रणाली वाले किसी भी विशाल देश के लिए अनोखी है। देश ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत जिस तरह से कार्य किया, उसी तरह देश में पानी से सम्बन्धित अलग-थलग पड़ी संस्थाओं को समन्वित कर तथा जल सुरक्षा को हर एक नागरिक की जिम्मेदारी बनाकर, भारत राष्ट्रीय जल सुरक्षा सुनिश्चित करने की एक मिसाल पेश कर सकता है।