कम तापमान वाले लेह लद्दाख में हो रहे है खेती के प्रयोग

लेह-लद्दाख की वादियों में कम तापमान में तरबूज-टमाटर उग रहे, 2025 तक ऑर्गेनिक फूड हब बनेगा




  • डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. स्टोबडन के मुताबिक, लद्दाख में तरबूज की पैदावार जमीनी क्षेत्रों से लगभग दोगुनी

  • मिशन ऑर्गेनिक डेवलमेंट इनीशिएटिव के तहत तीन फेज में 200 कराेड़ की लागत से काम होगा, 113 गांवों में से पहले फेज में 38 गांव शामिल

  • बिना केमिकल के 30 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की उपज हो रही, डीआरडीओ के साइंटिस्ट किसानों को पहाड़ पर खेती की तकनीक सिखा रहे 

  • लेह के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर ताशी सेतान के अनुसार, ऑर्गेनिक खेती से किसानों की सालाना इनकम डबल हो जाएगी

  • अभी तरबूज-खरबूज उगाकर किसान 10 लाख से 12 लाख प्रति हेक्टेयर कमा रहे





लेह. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त के भाषण में कहा था कि धीरे-धीरे हमें खेती में यूरिया का इस्तेमाल कम करना चाहिए। उनका इशारा ऑर्गेनिक खेती बढ़ाने की तरफ था, लेकिन किसान कम पैदावार के डर से यूरिया और फर्टिलाइजर का साथ नहीं छोड़ रहे। इसी बीच, लेह-लद्दाख पूरे देश के लिए उदाहरण बनकर उभर रहा है। यह जल्द ही ऑर्गेनिक फूड हब बनने वाला है। भौगोलिक परिस्थियों से जूझता यहां का किसान वह सारी फल और सब्जियां उगा रहा है, जो गर्म तापमान में और नदी किनारे ही पैदा हो सकते हैं। 5 से 6 डिग्री सेल्सियस के औसत तापमान वाले लेह के किसान तरबूज, खरबूज और टमाटर की अच्छी पैदावार कर रहे हैं।


इस मिशन पर डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) की विंग डिफेंस इंस्टिट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च के साइंटिस्ट डॉ. टी. स्टोबडन की टीम और लेह का कृषि विभाग काम कर रहा है। अब लद्दाख ने ऑर्गेनिक मिशन 2025 भी लॉन्च कर दिया है। अगले 6 साल में यहां सिर्फ ऑर्गेनिक खेती होगी। इसके लिए बाकायदा प्लान तैयार हो चुका है। अब इसके फाइनल ड्राफ्ट पर काम चल रहा है। इसका बजट शुरुआती तौर पर 200 करोड़ रुपए का है।


ऑर्गेनिक मिशन का पहला फेज इस साल पूरा होगा, उसके बाद सर्टिफिकेशन



  • साइंटिस्ट डॉ. स्टोबडन के अनुसार, लेह में 113 गांव हैं। इन्हें तीन फेज में ऑर्गेनिक खेती में बदला जाएगा। पहले फेज में 38 गांव शामिल हैं। यहां पहले से ही केमिकल का उपयोग नहीं हो रहा। हम यहां पर सही तरीके से ऑर्गेनिक खेती के उपयोग पर काम कर रहे हैं। 

  • लेह के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर ताशी सेतान के अनुसार, पहले फेज का काम इस साल के आखिर तक पूरा हो जाएगा। इन गांवों को पूरी तरह से ऑर्गेनिक खेती में बदलकर हम इसे सर्टिफाइड करवाएंगे। इसके लिए हमने सिक्किम सरकार के साथ एमओयू किया है। हमारे यहां से कुछ लोग सिक्कम में ट्रेनिंग लेकर आएं हैं।


लद्दाख में ऑर्गेनिक फार्मिंग हो कैसे रही है?



  • यहां पर बौद्ध संस्कृति होने की वजह से ज्यादातर लोग केमिकल का उपयोग नहीं करते। उनका मानना है कि रासायनिक कीटनाशक के इस्तेमाल से जीवों की हत्या होती है, जो सही नहीं है। इसलिए ज्यादातर किसान जैविक तरीकों पर ही भरोसा करते हैं। 

  • सब्जियों और फलों के लिए यहां का तापमान सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए ग्रीन हाउस और पॉलीहाउस बनाकर खेती की जाती है। ऐसा करने से मिट्टी का टेम्प्रेचर 5 से 7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ाया जा सकता है।

  • केमिकल की जगह पर जैविक खाद और वर्मीकंपोस्ट का उपयोग किया जा रहा है। 

  • यहां साल के 6 महीने ही मौसम ठीक होता है, इसलिए हर साल एक ही फसल की खेती की जाती है।


2025 तक पूरा लेह ऑर्गेनिक डिस्ट्रिक्ट बनेगा



  • लेह के चीफ एग्रिकल्चर ऑफिसर ताशी सेतान के अनुसार, 2022 में हम दूसरा फेज शुरू करेंगे। इसमें करीब 30-40 गांव शामिल होंगे। यहां पर केमिकल उपयोग करने वाले किसानों को बाकायदा ट्रेनिंग दी जाएगी। अभी भी हमारी टीम गांवों में जाकर किसानों को ऑर्गेनिक खेती के सही तरीके के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चला रही है। इसके बाद 2025 में हम बाकी बचे गांवों को शामिल करेंगे। इस तरह हम 2025 तक पूरे लेह को ऑर्गेनिक बना देंगे। 

  • साइंटिस्ट डॉ. स्टोबडन बताते हैं कि ऑर्गेनिक मिशन के लिए हिल काउंसिल ने 9 मार्च 2019 में संकल्प पारित किया था। इसका नाम है मिशन ऑर्गेनिक डेवलमेंट इनिशिएटिव (MODI)। अभी भी लद्दाख में ऑर्गेनिक खेती होती है, लेकिन यह सर्टिफाइड नहीं है।


तरबूज-खरबूज उगाकर किसान 10-12 लाख प्रति हेक्टेयर कमा रहे
लद्दाख की मूल फसल, गेंहू, जौ और राजमा है। अब वहां लद्दाख के वातावरण के हिसाब से तकनीक तैयार कर सब्जियों की पैदावार भी शुरू हो गई है। जमीन और नदी किनारे गर्म तापमान में होने वाले तरबूज-खरबूज भी यहां पैदा किए जा रहे हैं। इसकी सालाना पैदावार 30-40 मैट्रिक टन प्रति हेक्टेयर तक है, जो देश के बाकी हिस्सों की पैदावार से कहीं ज्यादा है। आमतौर पर जमीनी जगहों पर यह पैदावार करीब 25 मैट्रिक टन प्रति हेक्टेयर होती है। इससे यहां के किसानों को सालाना 10 से 12 लाख प्रति हेक्टेयर की आमदनी हो रही है। यह पारंपरिक फसलों से करीब चार गुना है। इसके अलावा यहां पर किसान बाकी सब्जी जैसे गोभी, टमाटर, शिमला मिर्च की भी पैदावार कर रहे हैं।


ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट मिलने के बाद राजमा की कीमत दोगुनी हो जाएगी
लेह के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसर ताशी सेतान के अनुसार, यहां के किसान अच्छी किस्म का राजमा उगाते हैं, वह भी ऑर्गेनिक। लेकिन ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट न होने की वजह से यह 'लेह राजमा' 120 से 150 रुपए/किलो ही बिकता है। सर्टिफिकेट के बाद यही 'लेह राजमा' 300-400 रुपए/किलो बिकेगा। इससे यहां के किसानों की आमदनी बढ़ जाएगी।