45 00 नदियां सूखी, एक तिहाई जमीन मरुस्थल बनी

हर मिनट मरुस्थल में तब्दील हो रही 23 हेक्टेयर भूमि


भारत पर प्रकृति प्रारंभ से ही मेहरबान रही है। भारत की धरती को प्रकृति ने सदानीरा नदियां, तालाब, झील, हिमालय, पर्वत, विशाल चारागाह, रेगिस्तान, समुद्र, विशाल जंगल और सभी प्रकार की जलवायु प्रदान की है। जिस कारण भारत का प्राकृतिक सौंदर्य पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। खेती की दृष्टि से भारत की मिट्टी को सोने के समान माना गया है, जिसके उपजाऊपन ने देश को कृषि क्षेत्र में एक अलग ऊंचाई तक पहुंचाया और भारत को कृषि प्रधान देश की ख्याति भी प्रदान की, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में अनियमित विकास ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा दिया। विकास के नाम पर प्रकृति को पूरी तरह से नजर अंदाज कर दिया गया। नतीजन भारत की छोटी बड़ी करीब 4500 नदियां सूख गई। साथ ही देश की 30 प्रतिशत जमीन मरुस्थलीकरण की चपेट में आ गई।


दरअसल मरुस्थलीकरण भूमि क्षरण का एक प्रकार है, जिसमें शुष्क भूमि क्षेत्र निरंतर बंजर होता जाता है और नम भूमि भी कम हो जाती है। जिससे वनस्पति खत्म हो जाती है, जिसका प्रभाव वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी पड़ता है। यही मरुस्थलीकरण भारत के साथ-साथ पूरे विश्व के लिए चुनौती बन गया है, लेकिन भारत इसकी भयावह चपेट में है और देश की करीब 30 प्रतिशत जमीन मरुस्थल में तब्दील हो चुकी है। जिसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों का है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा जारी 'स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2019' की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2013 के बीच भारत का मरुस्थलीय क्षेत्र 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तो वहीं दुनिया का 23 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण का शिकार हो चुका है और विश्वभर में प्रति मिनट 23 हेक्टेयर भूमि मरुस्थल में तब्दील हो रही है। भारत के सूखा प्रभावित 78 जिलों में से 21 जिलों की 50 प्रतिशत से अधिक जमीन मरुस्थल में बदल चुकी है। वर्ष 2003 से 2013 के बीच देश के नौ जिलो में मरुस्थलीकरण 2 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है। आंकड़ों पर नजर डालें तो गुजरात में  04 जिले, महाराष्ट्र में 3, तमिलनाडु में 5, पंजाब में 2, हरियाणा में 2, राजस्थान में 4, मध्य प्रदेश में 4, गोवा में 1, कर्नाटक में 2, केरल में 2 जिले, जम्मू कश्मीर में 5 और हिमाचल प्रदेश में 3 जिले मरुस्थलीकरण की चपेट में है। तो वहीं पंजाब का 2.87 प्रतिशत, हरियाणा का 7.67 प्रतिशत, राजस्थान का 62.9 प्रतिशत, गुजरात का 52.29 प्रतिशत, महाराष्ट्र का 44.93 प्रतिशत, तमिलनाडु का 11.87 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 12.34 प्रतिशत, गोवा का 52.13 प्रतिशत, कर्नाटक का 36.24 प्रतिशत, केरल का 9.77 प्रतिशत, उत्तराखंड का 12.12 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश का 6.35 प्रतिशत, सिक्किम का 11.1 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश का 1.84 प्रतिशत, नागालैंड का 47.45 प्रतिशत, असम का 9.14 प्रतिशत, मेघालय का 22.06 प्रतिशत, मणिपुर का 26.96 प्रतिशत, त्रिपुरा का 41.69 प्रतिशत, मिजोरम का 8.89 प्रतिशत, बिहार का 7.38 प्रतिशत, झारखंड का 66.89, पश्चिम बंगाल का 19.54 प्रतिशत और ओडिशा का 34.06 प्रतिशत  क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है। 


यही सब चुनौतियों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन काॅप 14 (यूएनसीसीडी) की मेजबानी भारी कर रहा है, जिसमें करीब 196 देश प्रतिभाग कर रहे हैं। सम्मेलन का आयोजन ग्रेटर नाॅएडा किया हो रहा है, जिसमें मरुस्थलीकरण बचने के उपायों पर मंथन किया जा रहा है, लेकिन सबसे अधिक मंथन हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव के लिए करना चाहिए। क्योंकि आज प्रकृति के जिस भी प्रकार का खिलवाड़ किया जा रहा है, वह हमारी जीवनशैली के कारण ही है, जिसमें संसाधन भोगी अधिक हो गए हैं। इन संसाधनों को जुटाने ही होड में इंसान अपने अस्तित्व के लिए सबसे ज्यादा जरूरी 'पर्यावरण' को ही भूल गया है। जिस कारण लोगों की संसाधन भोगी इन आदतों ने इंसानों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है। इसलिए लोगों में जागरुकता के लिए काॅप जैसे सम्मेलनों का होना आवश्यक है। साथ ही इनका धरातल पर असर भी दिखना चाहिए।