अब प्रदेश में होगी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, किसानों को मिल सकेगा फसलों का वाजिब दाम
- आय बढ़ाने की कवायद- प्रदेश में औषधीय फसलों और सब्जियों की प्रसंस्करण इकाई लगेगी
- गाजर, मटर, बींस और आलू उत्पादन को मिलेगा प्रोत्साहन
भोपाल। किसानों को उपज की बेहतर कीमतें दिलाने के लिए केंद्र सरकार के बाद अब मध्यप्रदेश सरकार ने कांट्रेक्ट फार्मिंग पर मॉडल कानून को हरी झंडी दी है। इसमें केवल खेती ही नहीं बल्कि सब्जी और औषधीय फसलों को कवर किया गया है। मध्यप्रदेश सरकार ने औषधीय फसल और सब्जियों की प्रसंस्करण इकाई लगाएगी, इसके लिए सरकार आईटीसी का सहारा लेगी।
आईटीसी के चेयरमैन संजीव पुरी और मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री कमलनाथ के बीच हुई बातचीत में यह तय किया गया कि औषधीय फसलों की खेती करने वाले किसानों के साथ कांट्रेक्ट फार्मिंग कर बाई बैक व्यवस्था के तहत खरीदी कर इन उत्पादों का प्रसंस्करण किया जाएगा। नूडल्स में उपयोग होने वाली सब्जी गाजर, मटर, बींस और आलू उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाएगा। बाई-बैक व्यवस्था से किसानों को इन सब्जियों का उचित मूल्य मिल सकेगा।
समाधान के लिए सेटलमेंट अथॉरिटी का होगा गठन :नए कानून के तहत ठेके पर खेती व अन्य सेवाओं को राज्यों के एपीएमसी यानी मंडी कानून के दायरे से बाहर रखने पर सहमति बनी है। इससे खरीददारों को लेनदेन की लागत में 5 से 10 फीसदी की बचत होगी। इसमें समझौता तोड़ने पर जुर्माना लगाने व अन्य विवादों के समाधान के लिए एक सेटलमेंट अथॉरिटी के गठन का भी प्रावधान है।
ये भी लिया निर्णय
- प्रदेश में तीन लाख 70 हजार बिगड़़े वनों में पंचायत एवं वन समितियों से अच्छे किस्म के बांस के पौधों का रोपण कराया जाएगा।
- छिंदवाड़ा जिले के तामिया में कैंसर के पचार के लिए वनौषधियों की पहचान कर उनके दवाओं में उपयोग के लिए प्रसंस्करण इकाई लगाए जाएं।
- प्रदेश में औषधीय फसलों के लिए 50 हजार मीट्रिक टन क्षमता का डिहाड्रेशन प्लांट के संबंध में भी चर्चा हुई।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए जरूरी कदम:कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान और कॉन्ट्रैक्टर, दोनों को फायदा हो, इसके लिए कुछ जरूरी उपाय करने चाहिए। जैसे, दोनों पक्षों के बीच होने वाले करार का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। किसान और कंपनी के बीच करार पारदर्शी होना चाहिए. कोई भी बात, नियम या शर्त छिपी हुई नहीं होनी चाहिए। कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम के दायरे से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को अलग रखा जाए। ठेके के तहत सभी कृषि उत्पादों का इंश्योरेंस कवर होने चाहिए. किसान और कंपनी के बीच अगर कोई विवाद होता है तो विवाद निपटाने के लिए अथॉरिटी बनाई जानी चाहिए।
खेती की दशा में हो रहा है सुधार :कमीशन फोर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेज (CACP) के मुताबिक गुजरात में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है। महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुबंध पर खेती की जा रही है और इस खेती के अच्छे परिणाण सामने आ रहे हैं। इससे न केवल किसानों को फायदा हो रहा है बल्कि, खेती की दशा और दिशा भी सुधर रही है। इधर, किसानों को बड़ा बाजार मिल रहा है। फसल की क्वॉलिटी और मात्रा में सुधार की गुंजाइश बढ़ गई है।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की चुनौतियां
- बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा
- कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर
- सामान्य किसानों के लिए समझना मुश्किल
- छोटे किसानों को इसका कम होगा फायदा
ये है कॉन्ट्रैक्ट खेती :अनुबंध पर खेती का मतलब ये है कि किसान अपनी जमीन पर खेती तो करता है, लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए कॉन्ट्रैक्ट खेती में किसान को पैसा नहीं खर्च करना पड़ता। इसमें कोई कंपनी या फिर कोई आदमी किसान के साथ अनुबंध करता है कि किसान द्वारा उगाई गई फसल विशेष को कॉन्ट्रैक्टर एक तय दाम में खरीदेगा, इसमें खाद-बीज से लेकर सिंचाई और मजदूरी सब खर्च कॉन्ट्रैक्टर के होते हैं। कॉन्ट्रैक्टर ही किसान को खेती के तरीके बताता है। फसल की क्वालिटी, मात्रा और उसके डिलीवरी का समय फसल उगाने से पहले ही तय हो जाता है।
राज्य स्तरीय समिति बनेगी, दोनों पक्षों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होगा
- एक राज्य स्तरीय बोर्ड का गठन होगा। इसके अलावा जिला, ब्लॉक या तालुका स्तर पर समिति का गठन या अधिकारी नियुक्त होंगे, जो दोनों पक्षों के बीच होने वाले करार का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन देखेगा और उनका रिकॉर्ड रखेगा ताकि कानून सही ढंग से लागू हो पाए।
- ठेका खेती की जमीन पर किसी तरह का स्थायी निर्माण नहीं होगा।
- छोटे और सीमांत किसानों को एकजुट करने के लिए किसाना उत्पादक संगठनों व कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- विवादों के निपटारे के लिए अथॉरिटी का गठन किया जाएगा।
- राज्यों को अपनी सुविधा के हिसाब से प्रावधानों में संशोधन करने की छूट दी गई है।