एक फसली प्रवृत्ति को त्यागे किसान तो हो सकते हैं मालामाल




 







 













नींबू की खेती कर किसान हो गए मालामाल


आज प्रकृति के असंतुलन के बीच खेती-किसानी का काम काफी अनिश्चिता भरा हो चला है लेकिन उसके बाद भी कभी बारिश तो कभी ज्यादा सर्दी के बीच उलझती फसलों के दौर में कई आधुनिक किसान ऐसे भी है जिन्होंने फसल के ट्रेंड को बदलकर एक नई मिसाल पेश की है. उन्होंने नई तकनीकी और कृषि किस्म के बलबूते पर आसमां को छुआ है. इसके लिए वह न तो यह सरकार पर आश्रित है न ही इसको प्रकृति से कोई भी शिकायत है. मालवा के किसान नींबू के बगीचे को लगाकर ही मालामाल हो गए है तो कुछ ने अमरूद, अलसी, मक्का जैसी फसलें को लेकर खुशहाली को हासिल किया है. मालवा क्षेत्र में यू तो पारंपरिक खेती का ही बोलबाला है. खरीफ में सोयाबीन, दाल दलहन तो रबी में गेहूं डालर चना की बहुतायत होती है. यहां पर 80 फीसदी रकबे में यही पर फसलें होती है. लेकिन जिले के ज्यादातर किसानों ने इंटीग्रेटेड फार्मिग को अपनाया है.














चार बीघा खेत में लगाए नींबू


स्मार्ट खेती से जुड़कर इन्होंने खेती की नई मिसाल को पेश किया है. उन्होंने चार बीघा भूमि पर नींबू के बगीचे को लगाने का कार्य किया है. यह माल जब बाजार में बिका तो इससे उनको 6.25 लाख की कमाई भी हुई. यहां पर उन्नत किस्म की खेती के राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार हासिल कर चुके अश्विनी कहते है कि अब किसानों का उद्यानिकी फसलों पर रूझान बढ़ा है. क्योंकि कम लागत में ज्यादा मुनाफा होता है.


एक फसल की प्रवृति को त्यागे किसान

यहां पर अलग प्रकार की खेती करके स्मार्ट किसान का कहना है कि किसानों को एक तरह व समूहिक फसल की प्रवृति तो त्यागना होगा. पारंपरिक फसलों के अलावा उड़द, मूंग, अरहर, अलसी, अमरूद, चना की फसलें कापी लाभकारी है क्योंकि जो उत्पादन बाजार में कम होगा उसका बढ़िया मूल्य मिलता है. यह बात किसानों को समझनी होगी. इसी भूमि को उपयोगी बनाकर गांवों में खुशहाली लाई जा सकती है. साथ ही किसानों को खेतों मेंढ़ एवं नाली की पद्धित को अपनाना होगा.


हो रही सीताफल और संतरा की खेती


यहां उद्यानिकी विभाग के मुताबिक यहां किसान उद्यानिकी क्षेत्र में आगे आ रहे है. यहां पर नागादा-खाचरौद सहित अन्य कुछ  गांवों में एक हजार हेक्टेयरमें बर्फ खान की वैरायटी का अमरूद लगा हुआ है. इसके साथ ही कई किसान सीताफल, अंगूर, संतरा, की उन्नत खेती पा रहे है. यहां पपीते की खेती के लिए जिले में मौसम भी अनुकूल नहीं रहता है