औरैया के किसान की मेहनत से पैदा हो सकती है काबुली हिंग... संभावनाएं बढ़ी
किसान पुत्र की मेहनत लाई रंग, काबुली हींग के पैदावार की 

बडी संभावना 

औरैया । हींग से हमारी सेहत का अनूठा रिश्ता है। पेट सम्बंधी रोगों में जहां हींग देसी दवा का काम करती है वहीं यह जिस भी पकवान में पड़ जाए उसका स्वाद भी जायकेदार हो जाता है। अगर हींग काबुली हो तो कहने ही क्या। काबुली हींग अभी तक सिर्फ किस्से व कहानियों में सुनी जाती थी लेकिन उत्तर प्रदेश के औरैया जनपद में एक किसान परिवार ने कड़ी मेहनत कर अपने खेत में काबुली हींग पैदा करने की उम्मीद जगाई है। वह इसके उत्पादन को लेकर लगातार प्रयास है।

 

किसान की मेहनत तब रंग लाती दिखती है जब उसके खेतों में उम्मीदों के अंकुर नहीं फूटते हैं। ऐसा ही कुछ औरैया जिले के अजीतमल इलाके के गांव पूठा के प्रगतिशील किसान बाबूराम के बेटे शिवकुमार ने कर दिखाया है। बेटे ने पिता के आइडिया को अपनाते हुए काम कर कढ़े परिश्रम से अपने खेतों में काबुली हींग के पौधे तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। किसान बाबूराम के अनुसार नवम्बर के अंतिम सप्ताह से काबुली हींग के पौधे आम जनता को मिलने लगेंगे। जिस काबुली हींग के किस्से किताबों में आप पढ़ते रहे हैं वहीं हकीकत में हमें अपने उत्तर प्रदेश की धरती पर मिलेगी और इससे होने वाला लाभ भी किसानों में खुशहाली लाएगा। यूपी में काबुली हींग की आहट किसान बाबूराम की परिकल्पना और बेटे शिवकुमार की कड़ी मेहनत का नतीजा है।

 

औरैया जिले के अजीतमल इलाके के एक गांव पूठा में कुशवाहा पौधशाला पर सबकी नजर टिकी है। यह पौधशाला बहुत जल्द ही काबुली हींग के पौधे देना वाला है। बाबूराम के बेटे शिवकुमार बताते हैं कि अफगानिस्तान के काबुल के मगरिबी इलाके में हींग के बीजों की मांग की गई है। यह उनकी उचित देखभाल से ही आज संभव हो सका है। शिवकुमार बताते हैं कि उनके पिता बाबूराम को अपनी रुचि के अनुसार पौधे तैयार करने का शौक था। बस उनकी इच्छा थी कि वह अपने खेत में काबुली हींग का पौधा भी तैयार करें। इसी इच्छा को पूरा करने की हमने ठानी। काफी भाग दौड़ के बाद उन्हें हैदराबाद की एक बीज कम्पनी से सम्पर्क करने में सफल हुए जो कि विदेशी मसालों और फलों के बीज आयात करती थी, उनसे काफी कीमत भुगतान कर बीज खरीदे गये। जिन्हें लाकर अपनी पौधशाला (नर्सरी) में कठोर परिश्रम और देखभाल के चलते 15 महीनों में इन बीजों से अंकुर फूटे। अंकुर फूटने पर जब लोगों को पता चला कि काबुली हींग यूपी के औरैया से निकलने वाली है तो बाबूराम और उसके परिवार ही नहीं बल्कि पूरे गांव की खुशी का ठिकाना न रहा।

 

किसान पुत्र शिवकुमार बताते हैं कि अब ये अंकुर छोटे-छोटे पौधों में बदल चुके हैं। अब बहुत जल्द ही इन पौधों को आम लोग भी खरीद सकेंगे। यह पौधे बलुई या काली मिट्टी में आसानी से और तेजी से पनपते हैं। पौधों से हींग निकलने की लम्बी प्रक्रिया है। पौधे से हींग प्राप्त करने के लिए हमें चार साल का इंतजार करना होगा। इसके बाद पौधों से दूध निकलना शुरू होगा। इस दूध को मूंग या गुथे हुए आटे में के चूरे में शोधित कर काबुली हींग का स्वाद लिया जा सकता है।

 

उन्होंने बताया कि काबुली हींग के लिए मेहनत और देखभाल के साथ ही संयम की भी जरूरत होती है। लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि संतोष का फल मीठा होता है। अगर हम यहां यह कहें कि संतोष का फल मीठा ही नहीं जायकेदार होता है तो गलत नहीं होगा। शिवकुमार ने अपने पिता बाबूराम के सिखाये गुर के कारण अब जायफल, दालचीनी, बंगाली कालीमिर्च, बेंगलुरु का केला समेत तमाम विदेशी किस्मों के पौधे भी तैयार करने शुरू कर दिये हैं।