सरकार कब सुनेगी से उत्पादक किसानों की पीड़ा को

कश्मीर के सेब किसानों का दर्द
वी एम सिंह
एक कहावत है कि रोज एक सेब हमें डॉक्टर से दूर रखता है। पर कश्मीर के सेब उत्पादक,  सेब के राष्ट्रीय उत्पादन में जिनकी 75 फीसदी हिस्सेदारी है, घाटी में व्याप्त अशांति और प्राकृतिक दुर्योग के कारण आत्महत्या करने के कगार पर हैं। जबकि लगातार पिछले दो साल के घाटे के बाद इस बार कश्मीरी सेब उत्पादक भारी उत्पादन की उम्मीद कर रहे थे। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने, जो देश भर में फैले किसानों के 250 संगठनों का महासंघ है, सेब उत्पादकों की जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल वहां भेजा था। प्रतिनिधिमंडल ने सैकड़ों किसानों तथा सभी जिलों से आए किसान संगठन के नेताओं से बात की। बाद में हम गंदरबल, कुलगाम और अनंतनाग जिलों के सेब के बगीचे और पंपोर तथा पुलवामा में केसर के खेत देखने भी गए।
कश्मीर चेम्बर ऑफ कॉमर्स के सदस्यों से भी उनके दफ्तर में प्रतिनिधिमंडल की वार्ता हुई। वहां भी सेब उत्पादकों की समस्याओं, जैसे- कोल्ड स्टोरेज, परिवहन, कीमत, बीमा आदि पर विस्तार से बात हुई। दरअसल कश्मीर की अर्थव्यवस्था सेब पर टिकी है, जिससे उसे सालाना करीब 10,000 करोड़ रुपये की आय होती है। चेम्बर के सदस्यों का कहना था कि कश्मीर में निवेश पर बात करना स्वागतयोग्य है, लेकिन पहले से चल रहे उद्योगों तथा बागवानी का संरक्षण करना भी उतना ही जरूरी है। असमय हुई भारी बर्फबारी ने पहले से परेशान सेब उत्पादकों को और भी मुश्किल में डाल दिया है। एक तरफ जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना देने के केंद्र सरकार के फैसले के बाद वहां कर्फ्यू लग गया और अफरातफरी फैल गई, जिस कारण अंगूर और चेरी की तोड़ाई नहीं हो सकी, जिससे अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा, दूसरी ओर, लगातार दो साल के घाटे के बाद इस बार सेब के भारी उत्पादन की संभावना को कश्मीर की राजनीतिक अस्थिरता से आघात लगा, क्योंकि परिवहन व्यवस्था के ठप होने से किसान सितंबर और अक्तूबर में सेब नहीं तोड़ सके। घाटी के सेब उत्पादकों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले दिनों पहली बार उनसे संपर्क किया और नाफेड के जरिये बाजार से अधिक कीमत पर सेब की खरीद शुरू की। लेकिन भारी बर्फबारी ने, जिससे सेब के साथ सेब के पेड़ों को भी बहुत नुकसान पहुंचा है, किसानों की उम्मीदों पर फिर पानी फेर दिया। नाफेड अब तक सेब के 1.5 लाख बक्से ही खरीद पाया है। जबकि पिछली बार 10 करोड़ बक्से सेब बिके थे।
बर्फबारी से सेब के पेड़ों की भारी क्षति होने के कारण आने वाले वर्षों में भी उत्पादन प्रभावित होगा। सेब के पेड़ों की चौदह-पंद्रह साल तक देखभाल करनी पड़ती है, उसके बाद वे फल देते हैं। चूंकि युवा पीढ़ी की बागवानी में रुचि नहीं है, ऐसे में, पचपन-साठ साल के किसान के लिए सेब के पौधे लगाना और दस-पंद्रह साल फल के लिए इंतजार करना संभव नहीं है। केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते जम्मू-कश्मीर क्योंकि अब केंद्र के अधीन है, ऐसे में, सरकार को चाहिए कि वह इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करते हुए कश्मीर के सेब उत्पादकों को एनडीआरएफ के तहत राहत प्रदान करे। इसके साथ ही सरकार को सेब के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी सुनिश्चित करने के साथ ही कृषि की तरह इसे भी बीमा के दायरे में लाना चाहिए। इससे न केवल कश्मीर के किसानों का भरोसा जीता जा सकता है, बल्कि इससे रोजाना एक सेब खाकर डॉक्टर को भी दूर रखा जा सकेगा!
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लेखक अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक