विकल्प तलाशे बगैर बंद नहीं किया जा सकता सिंगल यूज प्लास्टिक

प्रकृति ही देगी प्लास्टिक का हल, भारत में हर साल 1.4 करोड़ टन होता है यूज
'आदमी भी क्या अनोखा जीव है, उलझनें अपनी बनाकर आप ही फंसता है, फिर बेचैन हो जागता है और ना ही सोता है।' आज जब पूरे विश्व में प्लास्टिक के प्रबंधन को लेकर मंथन चरम पर है तो रामधारी सिंह दिनकर जी की ये पंक्तियां बरबस याद आती हैं । वैसे तो कुछ समय पहले से विश्व के अनेक देश सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उपयोग बंद करने की दिशा में ठोस कदम उठा चुके हैं और आने वाले कुछ सालों के अंदर केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का ही उपयोग करने का लक्ष्य बना चुके हैं।भारत इस लिस्ट में सबसे नया सदस्य है। जैसा कि लोगों को अंदेशा था, उसके विपरीत अभी भारत सरकार ने सिंगल यूज़ प्लास्टिक को कानूनी रूप से बैन नहीं किया है केवल लोगों से स्वेच्छा से इसका उपयोग बंद करने की अपील की है। अच्छी बात यह है कि लोग जागरूक हो भी रहे हैं और एक दूसरे को कर भी रहे हैं।अगर दुनिया भर के देशों द्वारा सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैन के पैटर्न को देखें तो हमें यह पता चलता है कि हर देश ने एक बार में नहीं बल्कि विभिन्न चरणों में अपने इस लक्ष्य सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाकर हासिल किया है। दरअसल, इसके अनेक पक्ष और पहलू हैं। जैसे आज प्लास्टिक एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो हमारी दिनचर्या का ही हिस्सा बन गई है, तो सबसे पहले तो सरकार को लोगों के सामने उसका ऐसा विकल्प प्रस्तुत करना होगा जो उससे बेहतर हो जिसमें थोड़ा वक्त लगेगा।इसके अलावा आज देश की अर्थव्यवस्था भी कुछ कुछ धीमी गति से चल रही है। ऐसे समय में जब सरकार देश की अर्थव्यवस्था को गति पहुंचाने के विभिन्न उपाय आजमा रही हो तो वह सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाकर एक नया आर्थिक संकट नहीं खड़ा करना चाहेगी। लेकिन उसे सिंगल यूज़ प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए कुछ ठोस औऱ बुनियादी कदम तो उठाने ही होंगे क्योंकि आज की स्थिति में भारत में हर साल 1.4 करोड़ टन प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है।
 इतना बड़ा उद्योग होते हुए भी इस सेक्टर में प्लास्टिक से पैदा होने वाले कूड़े के प्रबंधन की कोई संगठित प्रणाली नहीं है। लेकिन भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जो प्लास्टिक के अप्रबंधन के कारण पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा हो । विश्व का हर देश इस समस्या से ग्रस्त है। यही कारण है कि विभिन्न देशों की सरकारें इस चुनौती का सामना करने के लिए नए- नए रचनात्मक तरीके खोजने में लगी हैं।जैसे इंडोनेशिया की सरकार ने एक पॉलिसी लागू की थी कि उपयोग की गई प्लास्टिक की बोतलें जमा करने पर मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दी जाएगी। जबकि यूनाइटेड किंगडम ने एक पॉलिसी तैयार की है जो 2022 से लागू होगी। इसके अंतर्गत प्लास्टिक का उत्पादन करने वाले उद्योगों में रीसायकल किए पैकेज मटेरियल के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्लास्टिक के उत्पादन अथवा आयात पर प्लास्टिक पैकेज टैक्स लगाया जाएगा।भारत के लिए भी इस विषय पर दुनिया के सामने नए विचार नए इनोवेशन नए आईडिया रखने का यह एक बेहतरीन समय है। सम्पूर्ण विश्व जो आज प्लास्टिक प्रदूषण से जूझ रहा है उसके सामने नए प्राकृतिक विकल्पों से इस समस्या के समाधान का नेतृत्व करने का सुनहरा अवसर भी है और इतिहास भी। जब तक हमारे सामने प्लास्टिक का विकल्प नहीं आता, इस पृथ्वी के एक जिम्मेदार वासी के नाते, इस सृष्टि का अंश होने के नाते, सभी जीवों में श्रेष्ठ मनुष्य के रूप में जन्म लेने के कारण अन्य जीवों के प्रति अपने दायित्वों की खातिर कुछ छोटे- छोटे कदम हम भी उठा सकते हैं। जब हम बाहर जाते समय अपना मोबाइल लेना नहीं भूलते तो एक कपड़े का थैला ले जाना भी याद रख सकते हैं।