ऐसे बना था इंदौर का एमवाय अस्पताल
कहानी अपने इंदौर के महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय की*

 

महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय का खाका एक डिनर में तय हुआ था खाका, 1947 में निर्माण पर चर्चा शुरू हुई, 6 जून 1948 में शिलान्यास हुआ, 1949 में अस्पताल का ठेका दिया गया और 1953 में अस्पताल बनकर तैयार हुआ।

 

मध्यप्रदेश जब मध्यभारत था, तब इंदौर की भूमि पर एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल बनाने की योजना बनी। 1947 में अस्पताल निर्माण की चर्चा शुरू हुई, लेकिन तब इंदौर में अच्छे इंजीनियर या आर्किटेक्ट नहीं मिल पा रहे थे। तब महाराजा यशवंतराव होल्कर ने मगनलाल गिरधारीलाल प्रालि कंपनी से संपर्क किया। कंपनी में इंजीनियर रामचंद्र गुप्ता एक तिहाई के पार्टनर थे। उन्हीं के सामने एमवायएच का खाका खींचने की बात आई। संसाधनों की कमी के चलते उन्होंने रशिया के आर्किटेक्ट से संपर्क किया। 1948 में आर्किटेक्ट इंदौर आए और यहां एक डिनर पार्टी में तय कर दिया कि एमवायएच कैसा बनेगा। तभी महाराजा होलकर ने सरकार के सामने प्रस्ताव रखा कि उनके नाम से अस्पताल बनता है तो वे 35 लाख रुपए की मदद करेंगे। सरकारी नुमाइंदों ने हामी भरी और 35 लाख रुपए सरकार और जनसहयोग से जुटाए गए थे, ताकि अस्पताल को भव्य रूप दिया जा सके। और 1949 में अस्पताल का ठेका 70 लाख रुपए में कंपनी को दिया गया।

 

1949 में अस्पताल के लिए भूमि निर्धारित हुई, लेकिन मगनलाल गिरधारीलाल प्रालि कंपनी को फाइनेंसर नहीं मिलने से वह पीछे हटने लगी, तब इंजीनियर रामचंद्र गुप्ता ने व्यक्तिगत प्रयास किए और आगरा की सबसे

बड़ी फर्म शित्तरमल रामदयाल प्रालि कंपनी को सामने लाए।

 

स्वास्थ्य मंत्री व कई दिग्गजों ने एक डिनर पार्टी की थी, जिसमें अस्पताल का पहला पंखा काम आया था। भूमि के नीचे लबालब पानी होने से खुदाई मुश्किल हो गई थी, तब यहां छोटी-छोटी डक बनाकर काम किया गया। इंदौर में सीमेंट की सप्लाई कम होती थी, इसलिए मुंबई की एक कंपनी ने इसका जिम्मा लिया। क्रेन, लिफ्ट जैसे साधनों की कमी थी इसलिए हर हफ्ते मजदूरों की संख्या बढ़ाना पड़ती थी। संगमरमर के पत्थर मंगाकर लगाए गए थे।

 

देशभर के दिग्‍गज देखने आए थे मॉडल भारत और रशिया के संबंध अच्छे थे, इसलिए रशिया के आर्किटेक्ट ने अस्पताल की डिजाइन तैयार करना शुरू की। मॉडल कैसा बनेगा, यह जानने की उत्सुकता देश-विदेश के इंजीनियर्स में भी थी । जब मॉडल तैयार हुआ तो देशभर के दिग्गज इसे देखने इंदौर आए। दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे देखा तो उन्हें भी सहज विश्वास नहीं हुआ कि ऐसा अस्पताल इंदौर में बन सकता है। 6 जून 1948 में शिलान्यास हुआ था। 1953 में अस्पताल बनकर तैयार हुआ था और 23 अक्टूबर 1956 में इसका उद्घाटन हुआ था।

 

इंदौर की पहली लिफ्ट औषधि विज्ञान विभाग के प्रमुख रहे डॉ. बीसी बोस, इंजीनियर गुप्ता, डॉ. शंकर दयाल शर्मा, डॉ. ऑरी, डॉ. भट्टाचार्य डिनर करते वक्त एमवायएच के विकास कार्यों पर चर्चा करते थे। इसी चर्चा में एमवायएच में पहली लिफ्ट लगाने पर सहमति बनी। इंदौर के लिए यह ऐसी सौगात थी, जिसे लोग देखने के लिए उत्सुक रहते थे। जब लिफ्ट लगी तो देखने वालों का हुजूम लग गया, जिन्हें संभालने केलिए अलग से चौकीदार रखना पड़े थे।

 

इस अस्पताल के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाने वाले टॉपर थे रामचंद्र गुप्ता, मुंबई निवासी रामचंद्र गुप्ता लाहौर के रसूल इंजीनियरिंग कॉलेज में टॉपर थे। अस्पताल के लिए वे पत्नी कमलादेवी गुप्ता व पुत्र सुभाष के साथ मनोरमागंज, इंदौर में बस गए। 

 

मध्यभारत में अच्छे इंजीनियर व आर्किटेक्ट न होने से काम उन्हें सौंपा गया था। वे रोजाना सुबह आठ बजे अपनी हिन्दुस्तान कार से साइट पर आते थे। साइट को दीपावली व अन्य त्योहारों पर दीपों से सजा देते थे। 1953 में एमवायएच का निर्माण करके वे रतलाम का रेल्वे स्टेशन बनाने पहुंच गए। 1956 में उनकी मृत्यु हुई।

 

1950 के समय एशिया के सबसे बड़े अस्पताल का दर्जा रखने वाले 'महाराजा यशवंतराव चिकित्सालय'  प्रदेश का सबसे बड़े अस्पताल का दर्जा प्राप्त है, उच्च स्वास्थ्य तकनीक और श्रेष्ठ चिकित्सकों के साथ 1300 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में 2018 में 13.5 लाख मरीजों ने स्वास्थ्य लाभ लिया, वही 8.5 लाख मरीजों को ओपीडी में देखा गया, सरकार की तरफ से जो सुविधा इस अस्पताल को दी जा रही हैं, वो श्रेष्ठ है, वही श्रेष्ठ चिकित्सकों एवं उनकी सेवा की भी इस अस्पताल में कमी नही, कमी है संसाधन की। 

समाज के प्रगतिशील लोगो को इन संसाधन को पूर्ण करने में सहयोग के लिए लगातार आगे आते रहना होगा।