पैदल चलने वाले अपने को जोखिम में डालकर किस प्रकार सड़क पार करते हैं, इस पर आपकी नज़र कभी गई है या नहीं. कभी रूक कर सड़क पार करने वालों का चेहरा देखिए. आशंका, तनाव और भय का सम्मिश्रण उनके चेहरे पर दिखाई देगा. और जब सही-सलामत पार हो गए तब चेहरा देखिए. जैसे कोई बड़ा जंग जीत लिया हो ऐसी प्रफुल्लता उनके चेहरे पर दिखाई देगी. लेकिन यह देखने की फ़ुर्सत किसको है. फ़ुर्सत हो भी तो चौड़ी सड़कें तो ‘स्मार्ट्नेस’ की प्रतीक हैं. मोटर गाड़ी पर सवार को पैदल चलने वालों के चेहरे पर का भाव कहाँ दिखाई देता है. उसकी गाड़ी की गति में अवरोध पैदा करने वाले उसके मन में चिढ़ पैदा करते हैं. शहर के 'स्मार्टनेश' में धब्बा की तरह नज़र आते हैं. इसलिए वह इन धब्बों को साफ़ कर शहर को स्मार्ट बनाने के अभियान में लगा है. बाकी के लिए उसकी संवेदना में जगह कहाँ है !
ऊंची अदालतों पर भी अभिजात्य वर्ग का ही वर्चस्व
शिवानंद तिवारी
पूर्व सांसद
हमारे देश की ऊँची अदालतों में आभिजात्य वर्ग का ही वर्चस्व रहा है. उसका नतीजा है कि गरीबों की दुनियाँ और उनकी दुख तकलीफों से उनका कोई वास्ता नहीं रहा है. उंची अदालतों के आदेशों का अगर अध्ययन किया जाए तो यह बिलकुल साफ़ साफ़ दिखाई देता है. आज ही के दिन 21 अगस्त 2018 को फ़ेसबुक पर मैंने अपना यह पोस्ट डाला था. संदर्भ भी पटना उच्च न्यायालय के एक आदेश का ही है.
ग़रीबों के पेट पर लात मारिए और पटना को स्मार्ट बनाइए. पटना हाईकोर्ट इसी नीति पर कोड़ा लेकर प्रशासन के पीठ पर खड़ा है. बिहार जैसे गरीब राज्य में शहर के सड़कों के किनारे भाँति-भाँति के काम से कितने परिवारों के रोज़ी-रोटी का जुगाड़ हो रहा है. पता नही इसका कभी सर्वे हुआ है या नहीं. आँख खोलकर देखने से ही पता चल जाता है कि केवल पटना शहर में ऐसे लोगों की संख्या लाख से उपर होगी. यही लोग अपना और परिवार का पेट भरने के लिए हाईकोर्ट के अनुसार पटना को स्मार्ट बनाने की दिशा में अवरोध बने हुए हैं.
इन फुटपाथी लोगों का क़सूर क्या है ! हाईकोर्ट की टिप्पणियों से पता चलता है कि इनकी वजह से यातायात बाधित होता है. चार चक्का वाली गाड़ियाँ इनकी वजह से सड़कों पर सर्र-सर्र दौड़ नहीं पाती हैं. इसलिए इनका शहर निकाला कर दो. गाड़ियाँ सरपट दौड़ने लगेंगी. हमारा शहर स्मार्ट हो जाएगा. जिनका शहर निकाला हो रहा है उनकी या उनके परिवार की ज़िंदगी की गाड़ी कैसे चलेगी इसकी चिंता में कौन अपना सर खपाए ! यह देखना हाईकोर्ट का काम नहीं है.
सड़कों पर यातायात क्यों बाधित होता है, कभी आपने इस पर ग़ौर किया है ! तो ग़ौर कीजिए. किसी भी चौराहे पर या किसी अवरोध की वजह से रूकना पड़ा तो चार या दो चक्का वाले चालक एक क़तार में नहीं रुकते हैं. एक के बग़ल में दूसरा, दूसरे के बग़ल में तीसरा और दोनो ओर का आवागमन बाधित. गाड़ी या फटफटिया वाले यातायात के अनुशासन को मान लें तो कहीं जाम नहीं लगेगा.
लेकिन फुटपाथ को उजाड़ देना सहज है. गाडीवालों को अनुशासित करना कठिन. हमारे देश का अभिजात्य वर्ग कठिन रास्ता चुनने से हमेशा बचता है. वंचित समाज के लिए उसकी संवेदना में शायद ही कभी जगह मिलती है. पता नहीं पटना की चौड़ी स
शिवानन्द तिवारी
पूर्व सांसद