इन समस्याओं से कब मुक्ति दिलाओगे सरकार

आजादी के 73 साल फिर भी देश क्यों है बेहाल,


नियति के साथ जो मिलन हुआ था, जो सपने देखे थे, जो अरमान संजोए थे, क्या वह पूरे हुए? या आज भी हम उन समस्याओं से जूझ रहे हैं जिन्हें खत्म करने के लिए आजादी के दीवानों ने लंबा संघर्ष किया


 


 


भारत आजादी का 73वां साल पूरा कर है। 72बरस बीत जाने के बाद पीछे मुड़कर सोचने की इच्छा स्वाभाविक रूप से होती है। नियति के साथ जो मिलन हुआ था, जो सपने देखे थे, जो अरमान संजोए थे, क्या वह पूरे हुए? या आज भी हम उन समस्याओं से जूझ रहे हैं जिन्हें खत्म करने के लिए आजादी के दीवानों ने लंबा संघर्ष किया? तो आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम उन्हीं समस्याओं को टटोलते हैं ताकि जब हम देश की आजादी की सालगिरह मना रहे हों तो यह भ्रम न रहे कि हम ‘गुलाम’ नहीं हैं।


गरीबी से देश बेहाल


देश में गरीबी की बात करें तो दुनियाभर में 87 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। उनमें से सिर्फ भारत में 18 करोड़ के करीब की आबादी शामिल है। हालांकि पिछले कुछ सालों में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है।


अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स की ओर से भारत में गरीबी को लेकर जारी हाल ही के आंकड़े थोड़े सुकून देने वाले हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पिछले कुछ साल में भारत में गरीबों की संख्या बेहद तेजी से घट रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि हमारे देश के ऊपर से सबसे ज्यादा गरीब देश होने का ठप्पा भी खत्म हो गया है। देश में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं। यह दुनिया में गरीबी घटने की सबसे तेज दर है।


रिपोर्ट के अनुसार देश में 2022 तक 03 फीसदी से कम लोग ही गरीबी रेखा के नीचे होंगे। वहीं 2030 तक बेहद गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या देश में न के बराबर रहेगी। रिपोर्ट के मुताबिक मई 2018 के अंत तक भारत में लगभग 7.3 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे दर्ज किए गए।


गहरी हुई अमीर और गरीब के बीच की खाई


अमीर-गरीबों के बीच देश में कितना अंतर बढ़ चुका है, यह हाल ही में अंतरराष्ट्रीय राइट्स समूह ऑक्सफेम के सर्वे से मालूम होता है। सर्वे में दावा किया गया है कि भारत में साल 2017 में कुल संपत्ति के सृजन का 73 फीसदी हिस्सा केवल एक फीसदी अमीरों के पास है।
सर्वे में भारत के बारे में कहा गया है कि साल 2017 में 17 नए अरबपति बने हैं। इसके साथ ही अब देश में अरबपतियों की संख्या 101 हो गई है। 2017 में भारतीय अमीरों की संपत्ति 4.89 लाख करोड़ बढ़कर 20.7 लाख करोड़ हो गई है। यह 4.89 लाख करोड़ कई राज्यों के शिक्षा और स्वास्थ्य बजट का 85 फीसदी है।


भुखमरी 


हमारे देश में भुखमरी एक बड़ी समस्या है। जहां कुछ लोग आए दिन खाना बर्बाद करते हैं वहीं देश की राजधानी दिल्ली में भी बच्चियां भूख से तड़प कर मर रही हैं। आंकड़े भी भारत में भुखमरी की समस्या को बेपर्दा कर रहे हैं।


ग्लोबल हंगर इंडेक्स के ताजा आंकड़ों में भारत 119 देशों में से 100वें पायदान पर है। हैरानी तो ये है कि भारत अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 फ़ीसदी खाना बर्बाद हो जाता है। इन्हीं आंकड़ों में कहा गया है कि यह उतना खाना होता है जिसे पैसों में आंके तो यह 50 हज़ार करोड़ के आसपास पहुंचेगा।


भारत में शिक्षा की कमी


समाज में शिक्षा की कमी को सभी समस्याओं का जड़ माना जाता है। यही वजह है कि हमारे देश में भी शिक्षा की कमी की वजह से गरीबी, बेरोजगारी जैसी मूलभूत दिक्कतें अपना जड़ जमा चुकी है।


यूनिस्कों की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 2 करोड़ 87 लाख ऐसे एडल्ट हैं जो पूरी तरह अशिक्षित हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक पुरुषों की साक्षरता 82.14% और 65.46% महिलाओं की साक्षरता थी। कम महिला साक्षरता भी लिखने और पढ़ने की गतिविधियों के लिए महिलाओं के पुरुषों पर निर्भर रहने के लिये जिम्मेदार है। अगर देश में साक्षरता दर की बात करें तो केरल में जहां सबसे ज्यादा 93.91 फीसदी लोग साक्षर हैं वहीं इस मामले में सबसे पिछड़ा हुआ राज्य बिहार है। बिहार में सारक्षरता दर पूरे देश में सबसे कम 63.82 फीसदी ह


आतंकवाद के साये में पूरा देश


आज हमारे देश की आतंरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए आतंकवाद सबसे बड़ी समस्या है। भारत में आतंकवाद की शुरूआत 70 के दशक में उस वक्त हुई जब भारत की पहल पर पाकिस्तान के एक हिस्से को अलग कर बांग्लादेश का निर्माण किया गया।


जब 1971 में भारत से हार के बाद पाकिस्तान को ये महसूस हुआ कि वो अब सीधे युद्ध में नहीं जीत सकता तो उसने देश को अस्थिर करने और जम्मू-कश्मीर पर कब्जे के लिए आतंकवाद का सहारा लेना शुरू कर दिया। उसी वक्त से हमारा देश आतंकवाद से पीड़ित हो गया।


भारत में आतंकवादी हमले की लिस्ट काफी लंबी है लेकिन 1993 का बम धमाका, 2003 झावेरी बम धमाका, 2001 में संसद भवन हमला, 2005 में दिल्ली के सरोजनी नगर में हुआ धमाका, 2005 में अयोध्या में आतंकी हमला, 2008 में मुंबई आतंकी हमला, 2010 में वाराणसी में बम धमाका, पंजाब में खलिस्तानी आतंकियों के हमले, नागालैंड और असम में सिलसिलेवार आतंकी हमले। ये ऐसी लिस्ट है जो दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है।


जम्मू-कश्मीर में लगातार हमारे जवान शहीद हो रहे हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो मई, 2014 से मई, 2017 तक 812 आतंकवादी घटनाएं हुईं। इनमें 62 नागरिक मारे गए, 183 जवान शहीद हुए। वहीं राज्य के युवाओं का भी इस तरफ रुझान बढ़ रहा है जो देश के लिए चिंता का विषय है। भारत में सबसे ज्यादा आतंकी हमले पड़ोसी देश पाकिस्तान से प्रायोजित रहे हैं।


देश में बढ़ती बेरजगारी


आज देश में सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है लगातार बढ़ रही जनसंख्या के लिए रोजगार मुहैया कराना। भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने के लिए बेहद जरूरी है कि देश के हर युवा को उसकी क्षमता के मुताबिक रोजगार मिले।


साल 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रहे नरेंद्र मोदी ने चुनाव जीतेने पर हर साल युवाओं को करीब 2 करोड़ नई नौकरी देना का वादा किया था जिसमें सरकार अब तक असफल ही रही है। जबतक लोगों को रोजगार नहीं मिलेगा तब तक लोगों के खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ेगी। अगर खरीदने की क्षमता नहीं बढ़ी तो इसका सीधा असर देश में होने वाले उत्पादन और मांग पर पड़ेगा।


यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में देश में बेरोजगारी दर में और इजाफा हो सकता है। 2015-16 में बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुका है। 2012-13 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 29 साल के युवाओं की बेरोजगारी दर 13.3 फीसदी है। हमारे देश के लिए चिंता की बात ये है कि देश में सबसे ज्यादा बेरोजगारी 20 से 24 साल के लोग हैं।


देश में करीब 25 फीसदी ऐसे लोगों इस उम्र के जिनके पास कोई काम-धंधा नहीं है। देश में 25 से 29 की उम्र के ऐसे 17 फीसदी युवा हैं जो पूरी तरह बेरोजगार हैं। वहीं 20 साल से ज्यादा उम्र के करीब 14 करोड़ 30 लाख ऐसे युवा है जो नौकरी की तलाश में जुटे हुए हैं। आकंड़ों के मुताबिक वर्तमान में हमारे देश में करीब 12 करोड़ लोग पूरी तरह बेरोजगार हैं।


देश में घृणा की भावना


हमारे देश में दलितों और मुसलमानों के खिलाफ घृणा की भावना लगातार बढ़ रही है। अकसर दलितों और मुसलमानों पर अत्याचार की खबरें आती हैं। आज भी इस देश में दलित को घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने के लिए पुलिस की सुरक्षा मांगनी पड़ती है।


वहीं एक मुसलमान की दाढ़ी साफ कर उसकी भावनाओं से खिलवाड़ किया जाता है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ यही उदाहरण हैं, ऐसी तमाम घटनाएं और समस्याएं आए दिन हमारे सामने आती रहती हैं।


महिलाओं की सुरक्षा
देश में महिलाओं की सुरक्षा आज भी सवालों के घेरे में है। थॉमसन रॉयटर्स के एक सर्वे में दावा किया गया है कि महिलाओं पर अत्याचार के लिहाज से भारत दुनिया का सबसे खतरनाक देश है। इसमें घरेलू काम के लिए मानव तस्करी, जबरन शादी और बंधक बनाकर यौन शोषण के लिहाज से भी भारत को खतरनाक करार दिया है।


महिलाओं के लिए खतरनाक टॉप 10 देशों में पाकिस्तान छठे नंबर पर है। सर्वे में ये भी कहा गया है कि देश की सांस्कृतिक परंपराएं भी महिलाओं पर असर डालती हैं। इसके चलते उन्हें एसिड अटैक, गर्भ में बच्ची की हत्या, बाल विवाह और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता है।


सात साल पहले इसी सर्वे में भारत महिलाओं के मामले में दुनिया में चौथे नंबर का सबसे खतरनाक देश था। हाल ही में देश में एक नया ट्रेंड शुरू हो गया है जहां महिलाओं या लड़कियों से छेड़खानी का पहले वीडियो बनाया जाता है और फिर उसे इंटरनेट पर वायरल कर दिया जाता है। यह ट्रेंड निश्चित रूप से हमारे समाज के लिए खतरनाकर साबित हो रहा है और देश को नैतिक पतन की तरह ले जा रहा है।


भ्रष्टाचार
देश में भ्रष्टाचार की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालात ये हैं कि भ्रष्टाचार के मुकदमों में हमारे जननेता भी जेल की हवा खा रहे हैं। भ्रष्टाचार के दलदल से देश का कोई विभाग, कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। इस समस्या से आम जन हर दिन दो —चार हो रहा है। ये देश की कुछ ऐसी मूल समस्या हैं जिसका सामना हम आजादी मिलने के 70 साल बाद भी कर रहे हैं। सच्ची आजादी के मायने उसी दिन सिद्ध होंगे जिस दिन हम और हमारा देश इन मूलभूत समस्याओं से आजादी पा लेगा तब जाकर हम सही मायनों में आजाद हो पाएंगे।