देश के किसानों में उबाल.... विधेयक के खिलाफ किसान सड़कों पर
 


कार्पोरेट घरानों के दखल के अंदेशे से किसानों में उबाल


फज़ल इमाम मल्लिक

 

देश के किसानों में उबाल है. केंद्र सरकार के विधेयक के खिलाफ किसान सड़कों पर हैं. दक्षिण से लेकर उत्तर तक किसान आंदोलन कर रहा है और किसान विरोधी विधेयक को वापस लेने की मांग कर रहा है. केंद्र की मोदी सरकार ने संसद के मौजूदा सत्र में बिल पेश किया और इसे लेकर हंगामा मचा है. सियासी दलों ने इसका विरोध तो किया ही, सरकार में शामिल अकाली दल ने भी विरोध किया. जनादेश में किसानों के मुद्दे पर चर्चा हुई. पत्रकार हरजिंदर ने चर्चा का संचालन किया. चर्चा में समाजवादी व किसान नेता डा. सुनीलम, पत्रकार वीरेंद्र भट्ट, जनादेश के संपादक अम्बरीश कुमार और पंजाब के किसान नेता दर्शन पाल ने हिस्सा लिया.

 

हरजिंदर ने सरकार के तीन बिलों का जिक्र करते हुए कहा कि इन बिलों के जरिए सरकार किसानों को मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म करने पर विचार कर रही है. इससे किसान उद्वेलित हैं. चर्चा की शुरुआत करते हुए डा. सुनीलम ने किसानों की नाराजगी का जिक्र करते हुए बताया कि कोरोना काल में सरकार ने तीन अध्यादेश किसानों के खिलाफ लेकर आई. सरकार पूरी मंडी व्यवस्था खत्म करने, एमएसपी को खत्म करने के साथ गांव, किसान और किसानी को खत्म करने की साजिश कर रही है, उससे किसानों में गुस्सा है. इस साजिश के तहत ही अध्यादेश को लाया गया. कोई आफत तो आई नहीं थी जो अध्यादेश लाया जाए. युद्ध जैसे हालात को सीमा पर थे और टकराव चीन से है लेकिन अध्यादेश किसानों के खिलाफ लाया जा रहा है. कोरोना काल में शहरों में दुबके हुए थे, लेकिन किसान खेत के अंदर था. किसान ने इस मुश्किल समय में भी अन्न के भंडार को भर दिया. देश और दुनिया अर्थव्यवस्था में किसानों की हिस्सेदारी का लोहा मान रही है. किसानी यूं भी अब काफी जोखिम भरा हो गया है. किसानों की आत्महत्या कर रहे हैं. किसान आज सड़क पर इसलिए है क्योंकि उसके सामने जीने-मरने का सवाल है. पंजाब की बात करें तो वहां कांग्रेस की सरकार विरोध कर रही है, अकाली दल विरोध कर रहा है और किसान भी. किसानों को यह लग रहा है कि दिल्ली किस से चल रही है. कृषि तो राज्य का विषय है और राज्य इसका विरोध कर रहे हैं. पक्ष-विपक्ष और किसान विरोध कर रहे हैं तो इसे कानून बनाने की जरूरत ही नहीं थी. इसका सिर्फ एक ही मकसद है अडाणी-अंबानी को पूरे देश की खेती सौंपना चाहते हैं. किसानों को खेती किसानी खत्म होती दिखाई दे रही है.

 

वीरेंद्र भट्ट ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि सुनीलमजी ने कहा कि कृषि राज्य का विषय है और ठेका खेती का उल्लेख भी किया. जहां तक ठेका खेती की बात है तो यह 1985 में राजीव गांधी के काल में शुरू हो गई थी. पेप्सी ने हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आलू की खेती के लिए करार किया था. लेकिन तीनों ही राज्यों के किसानों का अनुभव अच्छा नहीं रहा क्योंकि चिप्स बनाने के लिए आलू उनके हिसाब का नहीं मिलता था तो उसे खरीदने से कंपनी मना कर देती थी. पांच साल बाद यह खत्म हो गया. यह सही है कि कृषि राज्य का विषय है, लेकिन 1991 में भारत की अर्थव्यवस्था में रिफॉर्म की शुरुआत हुई थी. तब नरसिंह राव प्रधानमंत्री थे और कृषि क्षेत्र में बड़ी रिफॉर्म की घोषणा हुई थी. क्योंकि सरकार का मानना था कि कृषि क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत है जो सरकार नहीं कर सकती. यह बात लगातार होती रही कि किसानों को मंडी में अपना माल बेचने से मुक्ति दिलाया जाए. नरेंद्र मोदी का सत्ता में आने से पहले प्रमुख नारा था, हम किसानों की आय दोगुनी करेंगे, यानी कृषि क्षेत्र को सियासी तौर पर प्राथमिकता दी गई. नरेंद्र मोदी को इस दिशा में आगे बढ़ने में सात साल लग गए. दरअसल यह मामला कृषि रिफॉर्म का है और किसानों को अढ़तिया के आतंक से मुक्ति दिलाने का है. पंजाब में किसानों के आंदोलन से जुड़े दर्शनपाल ने कहा कि जबसे हरित क्रांति का मॉडल आया, उसमें बाजार आया व पूंजी का निवेश हुआ तो किसान मंडी के लिए खेती करने लगा. दूसरी बात यह है कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों ने एमएसपी को बनाए रखने के लिए लंबा संघर्ष किया है. आज भी किसान इसे लेकर संवेदनशील है और गांव का हर किसान एमएसपी के गुणा-भाग को जानता है. पंजाब में मंडी का नेटवर्क बहुत बेहतर बना हुआ है. अपने गांव से किसान पंद्रह-बीस मिनट में मंडी पहुंच जाता है और उसकी पैदावार का एक-एक दाना मंडी में उठाया जाता है. पंजाब के किसानों को लगता है कि अगर यह बिल पास हो जाता है तो फिर कार्पोरेट घरानों का बोलबाल होगा और उसे अभी अगर उसकी उत्पाद की कीमत दो हजार रुपए मिलती है तो पांच साल बाद बारह-चौदह सौ ही मिलेंगे. बिहार और ओड़ीशा में हम इसे देख रहे हैं. इसलिए इस बिल के आने से जो सहूलतें हैं, एमएसपी मिलता है और खरीदारी की गारंटी खत्म हो जाएगी. निजी कंपनियों या कार्पोरेट घराने के आने के बाद किसानों के बुरे दिन आएंगे और वह नहीं बच पाएगा.

 

अम्बरीश कुमार ने कहा कि पिछले तीस सालों से किसानों के आंदोलन को देखता रहा हूं. सरकार के रुख से वाखिफ हूं. इन आंदोलनों को कवर भी किया है. सरकार किसानों के साथ सीधी बातचीत से जब भी पीछे हटी तो दिक्कतें पैदा हुईं हैं. मैंने शरद जोशी का दौर देखा, टिकैत का दौर देखा. आज भी जो चल रहा है महाराष्ट्र से लेकर मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब में किसान सड़कों पर हैं. किसानों का कहना है कि सरकार जो कानून बनाने जा रही है वह ठीक नहीं है. किसानों को लग रहा है कि सरकार कार्पोरेट के दबाव के सामने घुटने टेक रही है. ऐसा पहले भी हुआ और जब-जब हुआ किसान आंदोलन तेज हुआ. मुझे लग रहा है कि किसानों से संवाद नहीं कर सरकार बड़ी गलती कर रही है