सनई के फूल आ गए
डा शारिक़ अहमद ख़ान
सनई मतलब सन के फूल आ गए.सनई से बांध भी बनती है,बांध मतलब बांद मतलब चारपाई बिनने वाली रस्सी.सनई के फूलों का चोखा और सब्ज़ी भी बनती है,कल नाश्ते में बनेगी,देखते हैं चोखा बनाना है या सब्ज़ी.दोनों को बनाने की पूरी विधि हम पहले दो बार बीते बरसों की पोस्टों में बता चुके हैं,जिसे जानना हो सर्च करे.सनई के फूलों की सब्ज़ी और चोखा खाने से शरीर फूल की तरह हल्का हो जाता है,ये फूल एंटीऑक्सीडेंट और मिनरल्स से भरपूर होते हैं,इसी मौसम में आते हैं,अब दुर्लभ होते जा रहे हैं.साल में कम से कम एक बार हम सनई के फूलों की सब्ज़ी या चोखा बनवा लेते हैं.सनई से याद आया कि रघुपति सहाय 'फ़िराक़ गोरखपुरी' एक बार गोरखपुर से शिब्बन लाल सक्सेना द्वारा बनाई गई पार्टी किसान मज़दूर प्रजा पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे.शिब्बन लाल सक्सेना ने फ़िराक़ साहब को चढ़ा दिया कि आप जीत जाएंगे,फ़िराक़ साहब चुनाव लड़ गए.फ़िराक़ ने एक बस हायर की,बस जहाँ-जहाँ तक जाती फ़िराक़ बस वहाँ-वहाँ प्रचार करने जाते.फ़िराक़ के भाषणों को कम लोग समझते,अनपढ़ देहातियों की भीड़ समझती ही नहीं,देश नया-नया आज़ाद हुआ था,तब शिक्षा भी कम थी और भोजपुरी बोलने वाले अनपढ़ लोग फ़िराक़ की बातें ही ना समझें,सभा में ज़मीन पर बैठे सुर्ती मलें,पिच्च-पिच्च थूकें और दांत निकालकर हँसें.बस फ़िराक़ नाराज़ हो गए.मंच से ही कहा कि 'जो लोग सन को सनई,आदमी को मनई और गले को गटई कहते हैं वो फ़िराक़ को क्या समझेंगे,जाओ भई अपने-अपने घर जाओ गँवारों,हमें वोट मत देना '.ये कह फ़िराक़ साहब गाँवों से गोरखपुर शहर वापस पहुंचे,शिब्बन लाल सक्सेना पर नाराज़ हो गए कि हमें कहाँ इन आम चुनावों में फँसा दिया,लगे सक्सेना को खोजने,सक्सेना को लोगों ने बता दिया कि फ़िराक़ साहब बेहद नाराज़ हैं और आपको खोज रहे हैं.अब सक्सेना कहीं सुरक्षित जगह जाकर छिप गए.तभी एक दूसरा प्रत्याशी आया,फ़िराक़ साहब से कहने लगा कि अगर आप अपना पर्चा वापस ले लें तो मैं आपको पांच हज़ार रूपये दूंगा.फ़िराक़ ने कहा कि मैं कच्ची सड़क पर आती टूटी बैलगाड़ी पर एक शेर कह दूंगा और पचास हज़ार रूपये कमा लूंगा,भागो अपना झाड़ू जैसा मुँह लेकर.ये सुन प्रत्याशी भाग गया.चुनाव हुए,फ़िराक़ साहब चुनाव हार गए.तस्वीर में वही सन के फूल हैं जिसे भोजपुरी मनई लोग सनई कहते हैं और इसकी सब्ज़ी और चोखा बनाकर गटई के नीचे उतार लेते हैं.साभार